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ज्ञानवापी पर धमाकेदार बयान देकर हिंदुत्व के मैदान में बल्लेबाजी कर रहे हैं योगी,कास्ट पॉलिटिक्स पर बने रहना चाहते हैं अखिलेश यादव

लखनऊ।उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच हिंदुत्व के फायरब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ज्ञानवापी लेकर सोमवार को कड़ा बयान देते है।सीएम साफ-साफ कहते हैं कि ज्ञानवापी को मस्जिद कहोगे तो विवाद बना रहेगा।सीएम ने इस बयान से हिंदुत्व के मैदान में बल्लेबाजी करना दिखाया है।इस बल्लेबाजी की गूंज राजनीतिक गलियारों तक पहुंच भी गयी है।सीएम के इस बयान के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव का ट्वीट आया। ट्वीट में अखिलेश यादव ने सीएम के बयान का ही जिक्र करते हुए जातिवाद के धनुष से तीर चला दिया।

सपा मुखिया अखिलेश ने ट्वीट करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री आवास की दीवारें चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं हमें गंगा जल से क्यों धुलवाया था।अखिलेश ने ट्वीट छोटा ही रखा,लेकिन इसके जरिए हिंदुत्व पर हमला न करके जाति को लेकर किए गए भेदभाव का एंगल दे दिया। बता दें कि अखिलेश यादव के खाली करने के बाद सीएम के बंगले को गंगा जल से धुलवाया गया था।

चुनावी माहौल से ठीक पहले ध्रुविकरण के धुएं को छोड़ने की एक ऐतिहासिक घटना तो सीएम योगी की भी याद आती है। 2022 विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा भी नहीं हुई था कि सीएम ने भाजपा की जीत के लिए 80-20 के फॉर्मूले का जिक्र कर दिया था।बाद में सफाई देने की कोशिश तो की, लेकिन तब तक सियासी गलियारों में इसके 80 फीसदी हिंदू और 20 फीसदी मुस्लिम आबादी का मैसेज जा चुका था। ध्रुविकरण के धनुष तीर निकल चुका था।

चुनाव हुआ और परिणाम आए,जिसमें भी साफ दिखाई दिया कि भाजपा को पिछले चुनाव से इस बार अधिक हिंदू वोट मिले।इससे भाजपा की हिंदुत्ववादी पार्टी की छवि पर एक और मुहर लग गई।अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव होने वाला है।ऐसे में तमाम रणनीति बनाई जा रही है। भाजपा छोटी-छोटी पार्टियों की क्षेत्रीय हैसियत के आधार पर उनसे गठबंधन करने में जुटी है।इस बीच भाजपा की हिंदुत्व वाली छवि छिपी सी थी।सीएम योगी ने अपने बयान से हिंदुत्व वाली छिपी छवि को मजबूती से सामने ला दिया।

क्षेत्रीय जातिवादी समीकरण के अलावा भाजपा का कोर वोटर तो हिंदू ही है।विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो साल 2017 में भाजपा को कुल हिंदू वोट में से 47 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन तब चुनाव बाद सीएम चुना गया। 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सीएम योगी के चेहरे को पहले ही आगे कर दिया था।इसका जोरदार असर भी हुआ।भाजपा को इस बार विधानसभा चुनाव में 54 फीसदी हिंदू वोट मिले। मतलब आधे से भी अधिक हिंदू वोट भाजपा को मिला।यही वजह है कि भाजपा अपनी उस कोर लाइन से हटना नहीं चाहती जिसके बूते वो आज भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनी है।

*सपा कास्ट पॉलिटिक्स और मुस्लिम के भरोसे*

समाजवादी पार्टी को यादव समाज का सबसे अधिक वोट मिलता है।यादव समाज के वोटो पर एकाधिकार सपा की इस रणनीति को बल देने का मुख्य कारण भी है। इसके साथ मुस्लिम वोट मिले तो सपा की MY की थ्योरी प्रचलित हुई। हालांकि हिंदुत्व के खिलाफ मुखर होकर सपा अन्य पार्टियों से छिटक कर आ रहे हिंदू वोटरों को भी खोना नहीं चाहती।इसमें जाति का समीकरण सध जाने से सपा के हिंदू वोट बैंक में भी बढ़ोतरी हो जाती है। भाजपा के बाद 2022 के चुनाव में सबसे अधिक वोट सपा को ही मिले थे।पिछले चुनावों की तुलना सपा के हिंदू वोट में बढ़ोतरी हुई और इस बार सपा को 26 फीसदी हिंदुओं ने वोट दिया।

सपा का मानना है कि भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला जातियों के समीकरण से ही साधा जा सकता है।इसलिए सपा ने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को अपनी आगामी राजनीति की रणनीति बनाया है।कास्ट पॉलिटिक्स के अलावा सपा मुखिया अखिलेश यादव मुस्लिम वोटरों को भी नाराज नहीं करना चाहते। इसकी वजह है पिछले चुनाव में मिले मुस्लिम वोट। 2022 विधानसभा चुनाव में सपा को दो तिहाई से अधिक यानी 79 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे।बसपा और अन्य दलों से छिटकने वाले मुस्लिम वोट सपा को मिले।ऐसे में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा की कोशिश जातिवाद को लेकर बिखरे लोगों को हिंदुत्व के छाते के नीचे लाकर अपने पाले में करने की है।वहीं अखिलेश यादव अभी भी जातियों के क्षेत्रीय समीकरण की हकीकत में यकीन करते हुए नजर आ रहे हैं।

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