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विश्व विख्यात देवा महोत्सव का हुआ शुभारंभ,नामी गिरामी कलाकार करेंगे शिरकत

बाराबंकी।जो रब है वही राम है का सन्देश देने वाले महान सूफी संत सैय्यद हाजी वारिस अली शाह के वालिद सैय्यद कुर्बान अली शाह में लगने वाला देवा मेला बहुत प्राचीन है। सूबे की राजधानी लखनऊ से लखनऊ से लगभग 36 किलोमीटर दूर देवा में शहनाइयों की मधुर ध्वनि,पीएसी बैंड और आतिशबाजी के बीच मेले का शुभारंभ हुआ।शांति के प्रतीक कबूतर उड़ाए गए।

जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार झा की पत्नी डॉक्टर सुप्रिया ने मंगलवार को देवा के शेख मोहम्मद हसन गेट पर फीता काटकर मेले का शुभारंभ किया।उद्घाटन के बाद डॉक्टर सुप्रिया ने कहा कि पूरी दुनिया में प्रसिद्द इस मेले का शुभारंभ कर वह गौरवान्वित महसूस कर रही हैं और इस मेले की मुख्य थीम जो रब है वही राम के साथ-साथ विरासत और विकास को भी प्रमुखता के साथ जो स्थान दिया गया है वह भी प्रशंसनीय है।डीएम सत्येंद्र कुमार झा ने बताया कि वह इस ऐतिहासिक मेले के शुभारंभ पर सभी आने वाले श्रद्धालुओं और मेले में आने वाले व्यापारियों को शुभकामनाएं देता हूं। यह मेला अपनी बुलंदियों को छुए इसकी आशा करता हूं।

बता दें कि प्रेम-सद्भाव और धार्मिक सौहार्द का इतिहास समेटे देवा मेला पिता के प्रति सम्मान का प्रतीक है।यह विश्व विख्यात मेला पिछले लगभग एक सदी से अनवरत लगता चला आ रहा है।मेले के दौरान देश विदेश से लाखों जायरीन आकर यहां की पवित्र दरगाह पर चादर चढ़ा कर माथा टेकते हैं।मेले का शुभारम्भ होने के साथ ही दस दिवसीय देवा मेले की रौनक बढ़ गई है। लगभग 5 किलोमीटर में फैले मेले में जायरीन की भारी भीड़ उमड़ती है।इस मेले के पशु बाजार भी अच्छी नस्लों के जानवरों से गुलजार रहती है।

बताते चलें कि देवा शरीफ कस्बे को वारिस पाक की अपनी जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है।सन 1809 में जन्मे हाजी वारिस अलीशाह ने 1905 की सांय काल आवाम को जो रब है वही राम है का संदेश दिया था।इसके बाद हाजी वारिस अलीशाह ने 7 अप्रैल 1905 में शरीर त्याग दिया।हाजी वारिस अलीशाह के पिता दादा कुर्बान अलीशाह की याद में देवा शरीफ का उर्स हर साल के कार्तिक माह में होता है।हाजी वारिस अलीशाह ने बचपन से ही फकीरी के रास्ते पर चल पड़े थे।राम पोशाक धारण कर सूफी संप्रदाय का प्रचार करने लगे।वारिस ने अपने वालिद सैयद कुर्बान अली दादा मियां की उर्स का आयोजन देवा में करना शुरू कर दिया था और इस उर्ष में सत्यवादिता आपसी भाईचारा और मुल्क के अमन चैन का संदेश देना शुरू किया था जो इस संदेश को सुनने के लिए वालिद की उर्स में भारी संख्या में लोग आने लगे।

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