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26 साल में पहली बार इटावा चंबल सीमा के पास देखी गई दुर्लभ भारतीय ग्रे वुल्फ प्रजाति

श्री कार्तिक द्विवेदी (वन्यजीव विशेषज्ञ और शिक्षा अधिकारी इटावा सफारी पार्क) ने लगभग 3 दशकों के बाद इटावा चंबल क्षेत्र में एक लुप्तप्राय और दुर्लभ भारतीय ग्रे वुल्फ की तस्वीर खींची है। श्री रंजीत कुमार (पशु प्रजनक, इटावा सफारी पार्क) इस प्रजाति की पहचान करने वाले पहले व्यक्ति थे, जब वह दोनों इस क्षेत्र में पैदल घूम रहे थे। द्विवेदी बताते हैं कि भेड़िए को दूर से देखने के बाद उनको ऐसा प्रतीत हुआ कि निश्चित तौर पर यह विलुप्त प्रजाति से जुड़ा हुआ कोई जीव है। इसके बाद उन्होंने जब कैमरे में फोटो कैद की और उसको वास्तव में अध्ययन के हिसाब से देखना समझना शुरू किया तब काफी नई चीजों से पर्दा उठाना शुरू हुआ। अन्य वन्य जीव विशेषज्ञों ने इस भेड़िए की तस्वीर को भारतीय भेड़िए की तस्वीर के रूप में तस्दीक किया है.
भारतीय वृक या भारतीय भेड़िया, जिसका वैज्ञानिक नाम कैनिस लूपस पैलिपेस है, यह भेड़िए की एक जैविक उपप्रजाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप और पश्चिमी एशिया में पाई जाती है। अन्य वृकों की तुलना में भारतीय वृक कम सदस्यों वाली टोलियों में रहता है और कम ऊँचे स्वर में चिल्लाता है। बाघ की तरह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची के तहत भारतीय ग्रे वुल्फ एक लुप्तप्राय प्रजाति है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में 1,500-2,000 के बीच होने का अनुमान है।
भारतीय भेड़िए की तीन दशक बाद मौजूदगी अब चंबल सेंचुरी के अफसर के लिए शोध का विषय बन रही है। राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के अफसर ऐसा बताते हैं कि विलुप्त प्रजाति का माने जाने वाला भारतीय भेड़िया एक अर्से पहले चंबल इलाके में देखा जाता रहा है लेकिन उसके बाद तकनीकी कारणों से गायब होना शुरू हो गया। चंबल सेंचुरी के पूर्व डीएफओ श्री दिवाकर श्रीवास्तव बताते है कि सेंचुरी के अधिकारियों ने इलाके में वन्य जीवों की पहचान के लिए 1990 के दशक में एक अभियान शुरू किया था। उस समय बड़ी तादात में चंबल सेंचुरी में भारतीय भेड़िए पाए जा रहे थे, परंतु धीरे-धीरे समय बीतने के साथ ही भेड़िए चंबल इलाके से गायब होना शुरू हो गए।
द्विवेदी को उम्मीद है कि इस लुप्तप्राय प्रजाति के पुनरुत्थान को एक रिकवरी के रूप में देखा जाएगा। वह कहते हैं कि वन विभाग की मदद से क्षेत्र के भीतर जल्द से जल्द स्थानीय जनगणना की जाती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इस समूह में और भी लोग हैं या नहीं। इससे पहले, दोनों ने मिलकर बिजनौर जिले में चुनौतीपूर्ण गन्ना फलने-फूलने वाले मानव तेंदुए संघर्ष को हल करने में मदद की है। द्विवेदी इंटरनेशनल लीग ऑफ कंजर्वेशन फोटोग्राफर्स के सदस्य हैं और उन्होंने अपने एक दशक लंबे करियर में प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति के साथ-साथ शहरी वन्यजीव रहवासों पर भी काम किया है। उनकी वन्यजीव तस्वीरें नैट जियो, बीबीसी वाइल्ड और गूगल आदि द्वारा कई देशों में प्रकाशित की गई हैं।

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