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ना मतदाता पहचान पत्र ना मतदाता वृंदावन में गुमनामी में जी रही हैं विधवाएं बंद कर ली नेताओं ने आंखें

मथुरा।लोकसभा चुनाव के महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन चुनावी महाकुंभ में इन विधवाओं के लिए किसी के पास कोई वादा नहीं है और ना ही भविष्य में कुछ बदलने का किसी ने सपना दिखाया है।परिवार के साथ समाज और राजनीति ने भी इन विधवाओं को इनके हाल पर छोड़ दिया है।इन्होंने भी मान लिया है कि बृजभूमि की गलियों में गुमनाम मौत के अलावा इनके मुस्तकबिल में कुछ और नहीं है।

वृंदावन में एक मंदिर में भजन के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही अनिता दास का कहना कि मेरी उम्र अब 80 साल हो गई है। इतने साल बहुत कोशिश की,लेकिन अब इस उम्र में मतदाता के रूप में पहचान पाकर भी क्या करूंगी। दर-दर भटकने से अच्छा है कि आखिरी समय शांति से प्रभु के भजन में बिता दूं।दास ने कहा कि मुझे पता है कि चुनाव हो रहे हैं। बंगाल की हालत भी गंभीर है,लेकिन मैं यहां शांति से रहना चाहती हूं। ना तो वोट डालने में रूचि रह गई है और ना ही वोटर आईडी बनवाने में।कोलकाता से 17 साल पहले पति के निधन के बाद वृंदावन आई दास की तरह हजारों विधवाएं ऐसी हैं जिन्हें परिवार ने ठुकरा दिया,समाज ने भी जगह नहीं दी और मतदाता पहचान पत्र न होने के कारण अब लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व चुनाव में भी उनकी सहभागिता नहीं है।

10 रुपये के लिए चार घंटे इंतजार करती हैं विधवाएं

मथुरा लोकसभा में वृंदावन,राधाकुंड और गोवर्धन की तंग गलियों में कहीं भीख मांगती,कहीं तपती धूप में भंडारे की कतार में खड़ी तो कहीं मात्र 10 रुपये के लिए चार घंटे भजन गाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करती सफेद साड़ी में लिपटी ये विधवा महिलाएं किसी राजनीतिक पार्टी की वोट बैंक नहीं हैं।राजनीतिक उदासीनता ही विधवाओं की नियति है।मथुरा के 18 लाख से अधिक मतदाताओं में इन विधवाओं की संख्या एक प्रतिशत भी नहीं है।परिवार छोड़ा तो पहचान भी ये वहीं छोड़ आईं।आश्रमों में रहने वाली इन विधवाओं में से नाममात्र के पास मतदाता के रूप में पहचान पत्र है,लेकिन उम्र के आखिरी पड़ाव पर खड़ी इन अधिकांश विधवा महिलाओं का नाम किसी मतदाता सूची में दर्ज नहीं है।

देश की नागरिक तो है,मगर मतदाता नहीं

पति के निधन के बाद बहू की प्रताड़ना से तंग आकर 15 साल पहले यहां आई महानंदा अपनी स्मृति पर जोर डालने की कोशिश करते हुए कहती हैं कि शायद दस साल पहले वोट डाला था।मेरे पास आधार कार्ड है,लेकिन वोटर आई डी नहीं है और बनवाने के लिए अब इधर किसको बोलूं। 67 साल की गायत्री मुखर्जी को इसका मलाल है कि वह देश की नागरिक तो हैं,लेकिन मतदाता नहीं।पति के न रहने के बाद इकलौती बेटी को कैंसर से खोने के कारण बेसहारा हुई मुखर्जी इलाज के लिए लिया गया कर्जा चुकाकर वृंदावन आई थीं। गायत्री ने कहा कि पहले मैं किराये से रहती थी,लेकिन हमेशा डर रहता था कि पास में थोड़ा बहुत जो भी सामान है, चोरी न हो जाये। इसके अलावा कदम-कदम पर अपमान होता था सो अलग। मेरी किस्मत अच्छी थी कि आश्रम में जगह मिल गई। राजनीतिक रूप से काफी जागरूक गायत्री ने कहा कि कोलकाता में मैंने हर चुनाव में मतदान किया। मैं इस देश की नागरिक हूं और मुझे लगता है कि सरकार बनाने में मेरा भी योगदान होना चाहिए। शायद अब यह संभव नहीं तो दुख मनाने से क्या होगा।

वृंदावन में हैं 10-12 हजार विधवाएं

वैसे तो कभी भी इन महिलाओं की आधिकारिक तौर पर गिनती नहीं की गई, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक लगभग 10 से 12 हजार विधवाएं वृंदावन में हैं। पिछले चौदह साल से इनके कल्याण के लिए कार्यरत मैत्री विधवा आश्रम की सह संस्थापक और कार्यकारी निदेशक विन्नी सिंह ने कहा कि आखिरी बार 2007 में इनकी गणना हुई थी,जिसके बाद से कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है,लेकिन करीब 10 से 12 हजार विधवाएं वृंदावन में हैं। विन्नी सिंह ने कहा कि इनमें अब सिर्फ बंगाल ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश से भी महिलाएं आ रही हैं। मुझे रोज 25 से 30 फोन आते हैं। हम 400 महिलाओं की देखभाल कर रहे हैं,लेकिन इससे कहीं बड़ा आंकड़ा उनका है जिनके पास छत नहीं है। विन्नी सिंह ने कहा कि इनमें से पांच से सात प्रतिशत के पास ही वोटर आईडी होगा। हमने आधार कार्ड बनवाये, बैंक खाते भी कइयों के खुल गए,लेकिन वोटर आईडी के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटकर अब थक गए हैं। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये वोट देती हैं या नहीं।

तंग और किराये के गंदे कमरों में रहने को हैं मजबूर

फिल्म अभिनेता आमिर खान का काफी लोकप्रिय रहा शो सत्यमेव जयते में विधवाओं की व्यथा रखने वाली विन्नी सिंह ने कहा कि अधिकांश को विधवा पेंशन जैसी सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा है। सिर्फ 300 रुपये महीना पेंशन का प्रावधान है,लेकिन दुखद है कि वह भी सभी को मयस्सर नहीं है।कुछ को निजी या सरकारी आश्रमों में जगह मिल गई,लेकिन अधिकांश तंग और किराये के गंदे कमरों में रहने को मजबूर हैं।मंदिरों के शहर वृंदावन में भजन गाने के लिए इन्हें टोकन मिलता है और चार घंटे भजन गाकर दस रूपये के साथ चाय और एक समय का खाना। अपनी बारी आने के लिए इन्हें लंबा इंतजार भी करना पड़ता है।

सांसद हेमा मालिनी ने क्या कहा

वृंदावन के बीचों बीच चैतन्य विहार स्थित सरकारी आश्रय सदन को बंद करके इन्हें शहर के बाहरी इलाके में साढे़ तीन एकड़ में फैले एक हजार बिस्तरों वाले कृष्ण कुटीर में भेजा गया,लेकिन वहां मुश्किल से 250 विधवा महिलाएं रहती हैं। अधिकांश इसलिए नहीं जाना चाहती कि वे भगवान कृष्ण और वृंदावन से दूर हो जाएंगी।मथुरा से तीसरी बार चुनाव लड़ रही सांसद हेमा मालिनी ने कहा कि 2018 में इनके लिए कृष्ण कुटीर बनाया गया जहां सारी अत्याधुनिक सुविधाएं हैं, लेकिन ये वहां जाना ही नहीं चाहतीं। शायद ये जहां रहती हैं, वहीं खुश हैं। हम भी क्या कर सकते हैं।

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