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अजब-गजब:देवीपाटन मंडल में पांच उम्मीदवार खुद को नहीं दे पाएंगे वोट जहां से लड़ते हैं चुनाव वहां नहीं है उनका पता‌ और ठिकाना

बलरामपुर।कहा जाता है कि सियासत में मुकाम हासिल करने के लिए समीकरण के हिसाब से सियासतदान क्षेत्र तय करते हैं।समीकरण के हिसाब से सुरक्षित क्षेत्र चुनकर सांसद बनने के लिए कदम आगे बढ़ाते हैं।अपना क्षेत्र छोड़कर दूसरे जिले में भी शरण लेते हैं।श्रावस्ती लोकसभा के साथ ही देवीपाटन मंडल की अन्य लोकसभा में चुनावी मैदान में उतरे सियासी दिग्गज खुद को ही वोट नहीं दे पाएंगे।वजह वह दूसरे क्षेत्र में मतदाता हैं।वहां वह किसी और को चुनेंगे, लेकिन जहां से चुनाव लड़ रहे हैं वहां दूसरों के सामने झोली फैलाई है।

देवीपाटन मंडल के चार में से तीन लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के छह उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं।इनमें चार ऐसे हैं जहां से चुनाव लड़ रहे हैं वहां के मतदाता ही नहीं हैं।ऐसे में वे खुद का या परिवार के सदस्यों का वोट नहीं पा सकेंगे।श्रावस्ती लोकसभा में ही गौर करें तो अब तक के घोषित दोनों उम्मीदवार दूसरे जिले से हैं।भाजपा के साकेत मिश्र का ननिहाल भले ही श्रावस्ती में है,लेकिन साकेत देवरिया जिले के मूल निवासी हैं, लेकिन साकेत की कर्मभूमि श्रावस्ती ही रही है। श्रावस्ती में साकेत लगातार सामाजिक कार्य किया है।सपा उम्मीदवार राम शिरोमणि वर्मा श्रावस्ती के मौजूदा सांसद हैं।राम शिरोमणि भी अंबेडकरनगर जिले के मूल निवासी हैं।दोनों उम्मीदवार अपने जिले में जहां दूसरे को चुनेंगे, वहीं खुद को वोट देने से वंचित रहेंगे।

बहराइच में सपा प्रत्याशी रमेश गौतम भी गोंडा जिले के रहने वाले हैं। रमेश 2007 में विधायक भी रह चुके हैं। उस समय भी रमेश गोंडा के डिक्सिर विधानसभा (अब तरबगंज) से चुनाव लड़े थे, जबकि निवासी कटरा बाजार विधानसभा के रहे। इसके बाद रमेश मनकापुर से चुनाव लड़े। कभी खुद को वोट नहीं दे सके। गोंडा लोकसभा से सपा प्रत्याशी श्रेया वर्मा भी बाराबंकी जिले की रहने वाली हैं।

सियासत में बाहरी नेताओं को सफलता मिली तो अन्य को भी राह मिली। भले ही खुद को वोट नहीं कर सके, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख सरीखे नेता बलरामपुर लोकसभा (अब श्रावस्ती) से ही सदन तक पहुंचे। यह सिलसिला आगे भी कायम रहा।ऐसे ही गोंडा, कैसरगंज, बहराइच लोकसभा में भी बाहर के लोग सांसद बने। इसके बाद से एक दौर ही चल रहा है।

लोकसभा चुनाव में क्षेत्र तय करने में पार्टियां हर समीकरण साधती हैं। पहला तो जातीय समीकरण अहम होता है, वहीं पार्टियों में दावेदारों की पकड़ भी काम आती है।श्रावस्ती में सजातीय मतदाताओं की बाहुलता के साथ ही भाजपा में अच्छी पकड़ से साकेत मिश्र को टिकट मिला। सपा के राम शिरोमणि वर्मा को सजातीय मतदाताओं के साथ ही मौजूदा सांसद होने का लाभ मिला। इसी तरह 2019 के चुनाव में कैसरगंज से विधायक व प्रदेश सरकार में मंत्री रहे मुकुट बिहारी वर्मा को भाजपा ने अंबेडकरनगर से प्रत्याशी बनाया था, जहां कुर्मी वोटरों को साधने की कोशिश की गई थी। यह अलग बात है कि मुकुट बिहारी चुनाव नहीं जीत सके थे।

बाहरी प्रत्याशी आम लोगों के बीच जल्दी पैठ बनाने में सफल भी हो जाते हैं। इसके पीछे खास वजह होती है कि उनसे आम लोगों को कोई शिकायत नहीं रहती। स्थानीय दावेदार किसी न किसी मौके पर गांवों की पार्टीबंदी से जुड़ जाते हैं। इससे चुनाव के समय भीतरी विरोध का भी सामना करना पड़ता है। लोग मुखर तो नहीं हाेते हैं, लेकिन मतदान के दिन अपनी ताकत का एहसास जरूर करा देते हैं। वहीं बाहरी से पुरानी किसी तरह की अदावत नहीं रहती।

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