लखनऊ।एक समय था अपराधी उत्तर प्रदेश की सियासत में सीधा दखल रखते थे।ये खुद भी सांसद-विधायक बन जाते थे, लेकिन इस बार मतदाताओं ने उनके प्रभुत्व को भी नकार दिया है।पश्चिम से लेकर पूर्वांचल तक बाहुबली इस बार चुनाव लड़ते हुए तो नहीं दिखे,लेकिन जौनपुर और अयोध्या में बाहुबलियों सक्रियता जरूर रही,लेकिन भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को जिताने असफल रहे।
बाहुबलियों को जनता ने नकारा
सियासी दलों के लिए भले ही बाहुबलियों की अपनी उपयोगिता हो,लेकिन मतदाता अब बाहुबलियों को नकारने लगे हैं।प्रत्याशियों और लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखा जाए तो इसका साफ संकेत मिलता है।अयोध्या जिले की गोसाईगंज विधानसभा से समाजवादी पार्टी के बाहुबली विधायक अभय सिंह राज्यसभा चुनाव के दौरान बागी हो गए थे।भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के बाद अभय सिंह खुलकर भाजपा के साथ खड़े हुए थे।लोकसभा चुनाव के दौरान ही अभय सिंह के पिता औल पत्नी भी भाजपा में शामिल हो गई थीं।
काम नहीं आए अभय और धनंजय
माना जा रहा था कि अभय सिंह फैजाबाद (अयोध्या) लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह के लिए मददगार साबित होंगे,लेकिन ऐसा हुआ नहीं।लल्लू सिंह चुनाव हार गए।भाजपा ने जौनपुर में कृपा शंकर सिंह की राह आसान करने के लिए पूर्व सांसद बाहुबली धनंजय सिंह को अपने साथ मिलाया। 2009 में जौनपुर लोकसभा से बसपा से चुनाव जीतने वाले धनंजय सिंह ने इसके बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किस्मत तो आजमाई,लेकिन जीत नहीं पाए।धनंजय सिंह ने अपनी पत्नी श्रीकला रेड्डी को जौनपुर लोकसभा से चुनाव मैदान में उतारा था।श्रीकला को बसपा से टिकट मिला, जो बाद में कट गया। इसके बाद धनंजय सिंह भाजपा प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह के पक्ष में प्रचार करने उतरे, लेकिन अपना कोई प्रभाव नहीं डाल पाए।
सियासत के लिए अच्छा संकेत
पिछले चुनाव में बाहुबली बृजेश सिंह,पूर्व विधायक बाहुबली विजय मिश्रा,पूर्व सांसद बाहुबली डीपी यादव, बाहुबली रिजवान जहीर, बाहुबली उदयभान करवरिया और अमरमणि त्रिपाठी समेत अन्य बाहुबलियों का दबदबा देखने को मिलता रहा है,लेकिन इस बार चुनाव में ऐसा नहीं हुआ जो सियासत के लिए अच्छा संकेत है।
Author: मोहम्मद इरफ़ान
Journalist