इटावा।देशभर में दीपावली को लेकर धूम मची हुई है।लोग दीपावली को सेलीब्रेट करने की तैयारी में जुट गए हैं।महालक्ष्मी का वाहन माने जाने वाले उल्लू का महत्व दीपावली में बढ़ जाता है।ऐसे में कुछ अंधविश्वासी दीपावली के दिन उल्लू की बलि चढ़ाते हैं। इस दौरान उल्लुओं की कीमत भी बढ़ जाती है।दीपावली के मौके पर उल्लुओं की तस्करी और अवैध खरीद फरोख्त को लेकर वन विभाग हाई अलर्ट पर है।चंबल घाटी के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रजाति के उल्लू पाए जाते हैं,जिनको पकड़ने के लिए तस्कर दीपावली से पहले बड़े पैमाने पर सक्रिय हो जाते हैं।कई बार तस्करों को उल्लुओं के साथ गिरफ्तार भी किया जा चुका है।हालांकि कुछ वर्षों से यह सिलसिला वन विभाग की सक्रियता से रुका हुआ नजर आ रहा है,लेकिन इटावा में दीपावली पर्व पर उल्लू की बलि की आशंकाओं के मद्देनजर वन विभाग की ओर से हाई अलर्ट किया गया है।
जिला प्रभागीय वन अधिकारी अतुलकांत शुक्ला ने बताया कि इटावा के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर उल्लू पाए जाते हैं और इसी दौरान तस्कर उल्लू पक्षी को पकड़ने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। तस्कर उल्लू पक्षी को न पकड़ सके इसलिए वन विभाग की ओर से विभागीय अधिकारियों कर्मियों को सक्रिय करने के साथ-साथ गुप्तचर को भी व्यापक सतर्क कर दिया गया है।शुक्ला ने बताया कि सभी वन क्षेत्राधिकारियों के साथ-साथ में वन वाचर और गुप्तचर को सख्त दिशा नर्दिेश देकर तस्करों की गतिविधियों के मद्देनजर सक्रिय किया गया है।
पुजारी दिनेश तिवारी बताते हैं कि उनके पास कई ऐसे लोग आ चुके हैं जो सफेद और मटमैले रंग के उल्लुओं की मांग कर चुके हैं। इसके एवज में एक-एक करोड़ रुपए देने के लिए तैयार भी हुए हैं।वहीं इस संबंध में चंबल सेंचुरी के कर्मियों को सतर्क कर दिया गया है, ताकि कोई भी शिकारी बलि चढ़ाने के लिहाज से उल्लुओं को पकड़ने मे कामयाब नहीं हो।
बता दें कि सफेद और मटमैले रंग के उल्लुओं की मांग करने वालों का मानना है कि अगर उनको उल्लू मिल जाएगा वह कई सौ करोड़ रुपये कमा सकते हैं।ऐसे में इटावा में पाए जाने वाले दुर्लभ उल्लुओं की जान पर दीपावली के करीब आते ही मुश्किलें आनीं शुरू हो जातीं हैं, क्योंकि तंत्र साधना से जुड़े लोग दीपावली पर इसकी बलि चढ़ाने की दिशा में सक्रिय हो जाते हैं।विडंबना है कि अधिक संपन्न होने के फेर मे कुछ लोग दुर्लभ प्रजाति के संरक्षित वन्यजीव उल्लुओं की बलि चढ़ाने की तैयारी में जुट गए हैं। यह बलि सर्फि दीपावली की रात को ही पूजा अर्चना के दौरान दी जाती है। इन लोगों का मानना है कि उल्लू की बलि देने वाले को बेहिसाब धन मिलता है। यही कारण है कि चंबल सेंचुरी के कर्मियों के अलावा मुखबिरों को भी सतर्क किया गया है जिनसे निजी तौर पर संपर्क करके रखा गया है।चंबल सेंचुरी में पर्थरा गांव के पास महुआसूडा नामक स्थान के अलावा गढायता गांव के पास चंबल नदी के किनारे इस रंग के उल्लू देखे गये हैं।
गौरतलब है कि उल्लू भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित है।यह विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है। इनके शिकार या तस्करी करने वालों को कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है।
Author: मोहम्मद इरफ़ान
Journalist