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दलित सियासत का यूपी में नया अध्याय,हाथी की सुस्त चाल,चंद्रशेखर आजाद का आक्रामक अंदाज,बसपा के लिए बना चुनौती

लखनऊ।उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब एक नयी होड़ देखने को मिल रही है।यूपी में दलित राजनीति का नया पोस्टर बॉय बनने की राह पर निकले नगीना सांसद आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आजाद ने पूर्व मुख्यमंत्री बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की नींद हराम कर दी है।यूपी में नौ विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को उपचुनाव होगा।उपचुनाव में जीत दर्ज करने के लिए सभी पार्टियां जुटी हुई हैं,लेकिन बसपा के लिए चुनौतियां इससे कहीं बढ़कर है।

उपचुनाव को लेकर यूपी में सियासत चरम पर है। भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी गठबंधन के साथ तो बहुजन समाज पार्टी अकेले ही मैदान में है।वहीं नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद भी अपने ही अंदाज़ में उपचुनावों में उम्मीद की किरण देख रहे हैं।खासतौर से पश्चिमी यूपी में जब चंद्रशेखर प्रचार के लिए निकलते हैं तो उनके तेवर तीखे भी हैं,आक्रामक भी हैं और भावनात्मक भी। चंद्रशेखर हर तरीके से जनता के सामने अपनी बात रखते हैं। चंद्रशेखर कहते हैं कि वो उनके लिए लड़ाई लड़ रहे हैं,जिनको आज भी इंसान नहीं माना जा रहा है।

पूर्व सीएम मायावती बीते कई दशकों से दलित सियासत का चेहरा हैं,लेकिन बसपा का जनाधार लगातार नीचे खिसक रहा है।पिछले कुछ चुनाव में मायावती के दलित वोट बैंक में भाजपा और फिर सपा ने सेंध लगाई।अब मायावती के लिए सबसे बड़ी चुनौती नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ही दिखाई दे रहे हैं।लोकसभा चुनाव में नगीना से जीतने के बाद चंद्रशेखर दलित वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं और अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं।अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या चंद्रशेखर बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रहे हैं।

यूपी की सियासत में बसपा और आजाद समाज पार्टी के लिए दलित वोटरों पर पकड़ बनाने की होड़ लगी है। जो दलित वोटरों को लुभाएगा वही आगे बहुजन की सियासत का प्रमुख चेहरा होगा।कांशीराम ने बसपा का गठन 1984 में किया था।कांशीराम ने मायावती के साथ मिलकर बसपा को चुनावी राजनीति में आगे बढ़ाया। 1996 में पाहली बार मायावती मुख्यमंत्री बनी थीं,लेकिन 2012 के बाद बसपा की चाल धीमी होती चली गई।इस बीच चंद्रशेखर आजाद ने भीम आर्मी के जरिए दलित वोटरों में पैठ बनानी शुरू की।चंद्रशेखर को लोगों ने अपना समर्थन दिया।लोकसभा चुनाव के बाद ही चंद्रशेखर ने घोषित कर दिया था कि उनकी पार्टी आजाद समाज पार्टी उपचुनाव में उतरेगी।अब चंद्रशेखर अपना यह दायरा बढ़ना चाहते है,जबकि मायावती यह बखूबी जानती हैं कि अगर चंद्रशेखर अपनी पैठ बनने में कामयाब हो गए तो इसका नुकसान बसपा को होगा।

बसपा के वोट शेयर की बात करें तो 2007 विधानसभा चुनाव में 30.43 प्रतिशत,2012 में 25.प्रतिशत, 2014 लेकसभा चुनाव में 19.60 प्रतिशत,2017 विधानसभा चुनाव में 22.23 प्रतिशत,2019 लोकसभा चुनाव में 19.43प्रतिशत, 2022 विधानसभा चुनाव में 12.80 प्रतिशत और 2024 लेकसभा चुनाव में 9.39 प्रतिशत रहा।

चंद्रशेखर आजाद ने कानपुर की सीसामऊ सीट को छोड़कर बाकी आठ सीटों पर प्रत्याशी उतारा है।दोनों ही पार्टियां चुनाव मैदान में हैं।बसपा जहां लोकसभा चुनाव में अपने खिसके वोटबैंक को फिर से अपने पाले में लाना चाहती है तो वहीं लोकसभा चुनाव में मिली जीत और उसके प्रत्याशियों को मिले समर्थन से उत्साहित चंद्रशेखर दलित सियासत का नया चेहरा बनना चाहते हैं।देखने वाली बात होगी कि दलित सियासत में इस नए मोड़ से निपटने के लिए मायावती क्या नई चाल चलती हैं।आकाश आनंद को नए तेवर नए कलेवर के साथ उतारा जाता है या फिर मायावती खुद ही सियासत के इस भंवर का सामना अपने अंदाज़ में करेंगी।

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