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इटावा चुनावी मनोरंजन आइए जानते हैं चुनावी माहौल कैसे बच्चों के लिए होता था मनोरंजन का साधन किस तरह से होता था प्रचार

आचार संहिता व स्मार्टफोन ने बच्चों का चुनावी मनोरंजन छीना*

उन दिनों चुनावी नारे लगाते हुए बच्चे मनोरंजन करते हुए गलियों में घूमते थे चुनावी झण्डियां लेकर खेल खेलते थे यह बात एक दो दशक वर्ष पहले की है।वहीं बच्चों को जीत हार से मतलब नहीं रहता था।,,,

जीतेगा भई जीतेगा…. वाला जीतेगा। यह चुनावी शोर पार्टी के कार्यकर्ताओं की ओर से गूंजता ही था। यह चुनावी नारा लगाते हुए उन दिनों बच्चे मनोरंजन करते हुए गलियों में घूमते थे। चुनावी झण्डियां लेकर गलियों में छुक छुक कर गाड़ी वाला खेल खेलते थे। उन्हें यह चुनावी नारा खेल खेलने के लिए नया तरीका दे जाते थे। तो वही चुनावी सामग्री खेल खेलने के लिए हो जाती थी,,,

*जब चुनावी सामग्री टोपी लगाकर बच्चा नेता बनता था तब खूब हंसी ठिठोली होती थी गलियों में बच्चों का यह शोर पार्टियों के चुनाव चिन्ह का नाम लेकर होता था जनसंपर्क के दौरान प्रत्याशियों के आने के बाद उनसे अधिक पीछे बच्चे होते थे जहां मोहल्लों में बच्चों का चुनावी शोरगुल और यह खेल का दौर अब पूर्ण रूप से खत्म सा होता जा रहा है। और यह चुनावी नारे अब बच्चों की जुंबा से सुनाई ही नहीं दे रहे,,,

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