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पुरविया टोला मे सैकडों वर्षो पुरानी एतिहासिक होली पूरे विध विधान से समरसता व एकता का प्रतीक के रूप मे परम्परा गत तरीके से मनायी जाती है

होली से एक माह पूर्व पूर्णमासी के दिन होलिका को रखने की शुरुआत कुर्मि समाज के युवा डुगडुगी पीटकर घर घर से कन्डे लकड़ी आदि मांगकर पुरविया टोला के तल्लैया मैदान में करते है ।
होलिका दहन करने से पूर्व पुरविया टोला के नालापार  से चौपाई के साथ कुर्मि जाति के लोग गन्नों मे जौ, चना व गेहूँ की बाली तथा गाय के गोबर की होलिका बांध कर ढोलक , मजीरा आदि वाद्य यंत्रों को बजाते और फाग गाते हुए तल्लैया मैदान मे 1-नालापार ,2- बाग ,3- शिशिया , 4-कटरा कपूर चन्द्र , 5 – दक्षिणी पंजाब ,6 – उत्तरी पंजाबा  ,7- बखरी भीतर , 8- नखाशा ,9- कूंचा , 10-बाग भीतर  , 11- बेलदारन टोला ,12- चूना चक्की ,13- प्रोफेसर कॉलोनी आदि मुहल्ले के कुर्मि हजारो की संख्या मे एकत्रित होकर होली मे शामिल होते है।
इस मौके पर पुरुषो के साथ-साथ महिलाए, बच्चे व नई नवेली बहू तथा हाल के जन्मे बच्चे को होली तापने की परम्परा है ,इस कारण हजारो की भीड़ एकत्र होती है ।


नालापार से उठी चौपाई होली की फाग गाते हुए तलैया मैदान पहुँच कर  अन्य मुहल्लो से आये लोग भी चौपाई के साथ चक्कर कटते हुए विधि – विधान से पूजा अर्चना करने के बाद होलिका दहन का कार्यक्रम प्रारम्भ होकर गन्नो को भूनना चालू हो जाता है

होलिका दहन के बाद पुरविया समाज के सभी लोग जलती होलिका से आग लेकर अपने अपने घरो मे ले जाते है उसी आग से घरों मे होली जलाते तथा पुनः विद्य विद्यान से पूजा अर्चना करते है
पुरविया समाज मे किसी के घर मे गमी हो जाती है तो होली के पूर्व एकादशी को एक टोली  घर- घर जाकर घर के लोगो के कपड़ो के ऊपर रंग डालकर होली खेलने के लिए अमंत्रित करते है।
होली मे घर घर तरह तरह के पकवान , मिठाईयाँ , नमकीन आदि घरो मे ही बनती है खाश तोर पर गुझिया बनाया जाना भी परम्परा है।
 
होली जलने के बाद दो दिनो तक बडे हर्षो उल्लास के साथ एक दूसरे के ऊपर अमीर गुलाल व रंगो से होली खेलते है पुरानी परम्परा मे टेसू के फूलो के रंगो से होली खेलने का महात्व था।

पुराविया समाज मे नालापार , कटरा कपूर चन्द्र तथा बाग भीतर से फाग गाते हुए चौपाईयाँ उठाकर मन्दिरो तथा लोगो के घरो मे फाग गाते है ।
  
भैया दूज वाले दिन पक्का तालाब स्थित श्री जागेश्वर नाथ मन्दिर मे वृहद रूप से मेले का आयोजन किया जाता है ,इस मेले का मुख्य उद्देश्य लोगों के गिले-शिकवे दूर करना होता है इसलिए बराबार की उम्र वाले एक दूसरे के गले लगते हे तथा छोटे बडों के पैर छूकर आर्शीवाद लेते देखे जा सकते है ।

  होली की परवा की रात्रि से जगदीश विजय नाटक कल्ब द्वारा समाज के ही पुरुष परिसियन स्टाइल मे नाटक खेलते थे , नाटक की विशेष बात यह है कि महिलाओ के पात्रो का निर्वाहन बाखूबी से पुरुष ही सैकड़ो बर्षो से करते आ रहे हैं।
   टीवी तथा मोबाइल के चलन के कारण अब यह नाटक की परम्परा . 2006 से फीकी पड गयी है , पुनः नाटक खेलने के लिए नए पात्रो को तैयार कर एकांकी नाटक एवं बच्चो के नृत्य, फाग एवं दादरें आदि दिनांक 25 एवं 26 मार्च को साई उत्सव गार्डन , पुरविया टोला , इटावा में खेला जाना तय है
अगले वर्ष से देखने को मिल सकता है
 
              डा० हरीशंकर पटेल
         ( प्रमुख समाज सेवी)
महामहिम राज्यपाल द्वारा सम्मान प्राप्त

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