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रोमांचक है रामनगरी का चुनावी रण,अयोध्या के साथ ही देशभर में है रामलहर

अयोध्या।राम हैं तो मर्यादा है,राम जीवन के सार हैं,राम समृद्धि है।चुनावी माहौल में रोमांच भी। ये सभी तत्व रामनगरी के चुनावी मैदान को रोमांचक बना रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के साथ विपक्षी गठबंधन इंडिया की मोर्चेबंदी है तो बहुजन समाज पार्टी की रणनीति भी।चुनावी रंगत निखर रही है।

पूरे देश के लोग अब यह जानने के लिए उत्सुक है कि राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या यानी फैजाबाद लोकसभा में चुनावी माहौल कैसा है। रामलला अब यहां मुद्दा रहे या नहीं,क्या राममंदिर ने अयोध्या और समूचे अवध या पूरे देश में भाजपा का चुनाव आसान कर दिया है। लोगों के मन में ऐसे दिलचस्प सवाल है। इनमें से एक का जवाब है कि रामलला और राममंदिर भले ही अब मुद्दा न रहा हो,लेकिन इस बार के लोकसभा के चुनाव मैदान में लहर तो रामलला की है।इस धार्मिक ध्रुवीकरण से भाजपा का चुनाव कितना आसान होगा।इसका जवाब तो आने वाला समय ही देगा।

रही बात अयोध्या के चुनावी माहौल की तो यहां के दो बार के भाजपा सांसद लल्लू सिंह का तीसरी बार उम्मीदवार बनना ही रोमांच का सबसे बड़ा तड़का है। सिर्फ अयोध्या ही नहीं पूरा प्रदेश उम्मीद लगाए बैठा था कि यहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह चुनाव लड़ सकते हैं। पार्टी के बड़े नेताओं की ओर से ये चर्चाएं भी सामने आईं कि अयोध्या से किसी बड़ी फिल्मी हस्ती को उतारा जा सकता है। इन सब कयासों के बीच भाजपा हाईकमान ने जब लल्लू सिंह के नाम की घोषणा की तो उनके समर्थकों में खुशी की लहर जरूर दिखी, लेकिन आम मतदाता के लिए कोई चौंकाने वाली बात सामने नहीं आई। सब कुछ वैसा ही, जैसा 10 साल से देखते आ रहे हैं।

फिर रोमांच कैसा

दरअसल रोमांच ये कि अयोध्या में राम मंदिर, अयोध्या का अभूतपूर्व विकास, मोदी की गारंटी,भाजपा की मजबूत रणनीति की से लल्लू सिंह के लिए इस लोकसभा चुनाव में ऑल इज वेल रहेगा या विपक्षी गठबंधन इंडिया के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद की मतदाताओं के बीच सेंधमार रणनीति, उनका सधा हुआ चुनावी प्रबंधन, दोनों पार्टियों के कैडर वोट का एकजुट होने की उम्मीद भी कुछ गुल खिलाएगी।अनुभव की बात करें तो अवधेश प्रसाद सपा के कद्दावर नेता हैं। नौ बार विधायक और छह बार मंत्री रह चुके हैं। लल्लू सिंह भाजपा के भरोसेमंद हैं। पांच बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं। अवधेश प्रसाद और लल्लू सिंह जबरदस्त तरीके से चुनाव लड़ते हैं।

टक्कर देते आंकड़े

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा को मिले वोट यदि इस बार मिला दिए जाएं तो आंकड़े भाजपा प्रत्याशी को टक्कर देते नजर आते हैं। सपा प्रत्याशी आनंद सेन को 4,63,544 वोट मिले थे। कांग्रेस के निर्मल खत्री को 53,386। यह जोड़ 5,16,930 है।लल्लू सिंह के खाते में 5,29,021 वोट आए थे। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि इंडिया इन आंकड़ों को सच में कितना बदल पाता है।

2 बार अयोध्या से सांसद रह चुके हैं लल्लू

रामनगरी के चुनावी मैदान के रोमांचक होने का एक पहलू यह भी है कि यहां के चुनावी नतीजे हमेशा चौंकाते रहे हैं। राम मंदिर आंदोलन के बावजूद यहां भाजपा के उम्मीदवारों को हार झेलनी पड़ी। असल में यहां के लोगों ने जिस तरह से राजनीतिक दलों को सिर-माथे बैठाया, उसी तरह एक झटके में उतार भी फेंका। 1998 इसकी नजीर है। दो बार के सांसद और मंदिर आंदोलन के पुरोधा कहे जाने वाले विनय कटियार को तरजीह देने के बजाय यहां मतदाताओं ने सपा के मित्रसेन यादव को जिताया था। यहां के लोगों ने 1999 में भाजपा के विनय कटियार को फिर से गले लगा लिया। उठापटक का खेल यहीं नहीं  रुका। 2004 में यहां के लोगों ने बसपा से उम्मीदवार रहे मित्रसेन पर भरोसा जताया। उस समय भाजपा उम्मीदवार लल्लू सिंह ही चुनावी मैदान में थे। 2009 में मित्रसेन भी यहां के लोगों को रास नहीं आए। 20 सालों से जीत की बाट जोह रही कांग्रेस के उम्मीदवार निर्मल खत्री के सिर जीत का सेहरा बांध दिया। ये सभी हार-जीत उस दौर में बेहद ही अप्रत्याशित रहीं।पूरे देश के लिए यही देखना दिलचस्प है कि लल्लू सिंह जीत की हैट्रिक लगाने में सफल होंगे या अवधेश प्रसाद पहली बार यहां खाता खोलेंगे।

तो क्या बसपा बिगाड़ सकती है गणित

इस लोकसभा चुनाव में बसपा की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।विपक्षी गठबंधन में शामिल न होकर बसपा क्या राजनीतिक गुल खिलाएगी कोई नहीं जानता। विभिन्न सीटों पर उतारे गए उम्मीदवार किस दल का गणित बिगाड़ेंगे यह भी अपने आप में दिलचस्प है।सियासी पंडितों का कहना है कि किसी भी दल की हार-जीत में इस बार बसपा का बड़ा हाथ होगा।फैजाबाद लोकसभा में बसपा उम्मीदवार पार्टी का कैडर वोट हासिल करके किसी न किसी का तो नुकसान करेंगे ही।बसपा ने अंबेडकरनगर से भाजपा नेता रहे सच्चिदानंद पांडेय को फैजाबाद लोकसभा का प्रभारी बनाया है। यहां ब्राह्मण चेहरा उतारने से अन्य दलों के लिए लड़ाई कठिन  हो सकती है।

40 साल से चार नेताओं के इर्द गिर्द रही राजनीति

अयोध्या की राजनीति बीते 40 साल से चार नेताओं के इर्द गिर्द घूम रही है। इसमें निर्मल खत्री, मित्रसेन यादव, विनय कटियार और लल्लू सिंह। विनय कटियार तीन बार, मित्रसेन यादव तीन बार, निर्मल खत्री दो बार, लल्लू सिंह दो बार सांसद रह चुके हैं। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि इसमें पांचवें की एंट्री कब और कैसे होती है।

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