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मदरसा अरबिया कुरानिया इटावा के प्रधानाचार्य मौलाना तारिक शम्सी ने कहा कि हमारा मानना था कि उच्च न्यायालय का निर्णय तथ्यों की अनदेखी करते हुए किया गया

इटावा आल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया के उपाध्यक्ष और मदरसा अरबिया कुरानिया इटावा के प्रधानाचार्य मौलाना तारिक शम्सी ने कहा कि हमारा मानना था कि उच्च न्यायालय का निर्णय तथ्यों की अनदेखी करते हुए किया गया है, मदरसों के उद्देश्य को समझने में मा० उच्च न्यायालय से चूक हुई है। सुप्रीम कोर्ट में यह निर्णय चैलेंज किया गया जहां से इस पर मदरसों में कार्यरत शिक्षक कर्मचारीयों तथा छात्रों को बड़ी राहत मिली है। हाई कोर्ट ने मदरसा बोर्ड एक्ट 2004  को असंवैधानिक कह कर मदरसा छात्रों को अन्य विद्यालयों में प्रवेश कराने के निर्देश दिए थे, जो तर्क संगत नहीं थे। हमारा पहले भी कहना था कि प्रदेश में मदरसे इस एक्ट से पहले भी चलते और ग्रांट पाते थे। मदरसे शिक्षा संहिता 1908 के अन्तर्गत प्राच्य भाषा अरबी फारसी के संरक्षण के लिए चलते हैं जिस तरह संस्कृत पाठशालाएं संस्कृत भाषा के संरक्षण के लिए संचालित होती आ रही हैं। इसलिए मदरसा शिक्षा को धर्म निरपेक्षता के खिलाफ कहना सही नहीं है। बहरहाल हमारे विद्वान अधिवक्ताओं के तर्कों से मान0 सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति जताई और हाई कोर्ट के आदेश को स्टे कर दिया हमें आशा है कि सर्वोच्च न्यायालय से अंतिम निर्णय भी हमारे पक्ष में होगा। मदरसा संगठनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी, मुकुल रोहतगी, एस पी पटवालिया, सलमान खुर्शीद तथा हुज़ैफ़ा अहमदी ने बहस की। जिन्हें ए0 ओ0आर0 रोहित स्थालेकर, संकल्प नारायण,एम0ए0औसाफ एडवोकेट ने सहयोग किया।

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